1. "हीरों की बस्ती में हमने काँच-काँच बटोरे हैं,कितना लिखा फ़साना फिर भी सारे काग़ज़ कोरे हैं ।" : म. सिंह
2. "रात की ओस दरख्तों पे गिरी होगी ज़रूर,. ज़िन्दगी अपनी भी कुछ यूँ ही कटी होगी ज़रूर|
ज़िक्र आता है तो झुक जाती हैं आँखें उसकी, मुझसे मिलने की खलिश दिल में छुपी होगी ज़रूर||" - ज़ैदी जाफ़र
या बुद्धिमानी की ओट में, वे चुप रहे |
महज़ कहा
हूँ, हाँ और एक नहीं" : अग्रवाल
चलूँगा
पैर उठाते हीकोई पीछे से कालर पकड़ कर खींचता है
किस से पूछ कर पैर उठाया।" : साही
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रसाद –
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।"
: Shivmangal Singh 'Suman'
2. "रात की ओस दरख्तों पे गिरी होगी ज़रूर,. ज़िन्दगी अपनी भी कुछ यूँ ही कटी होगी ज़रूर|
ज़िक्र आता है तो झुक जाती हैं आँखें उसकी, मुझसे मिलने की खलिश दिल में छुपी होगी ज़रूर||" - ज़ैदी जाफ़र
3. "कहानी में तो किरदारों को जो चाहे बना दीजे | हक़ीक़त भी कहानी कार हो ऐसा नहीं होता ||" : निदा फ़ाज़ली
4. "अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो कि दास्ताँ आगे और भी है" - Guljar
5. "जो वादा तूने किया नहीं, मुझे उस पे क्यों कर यकीन था।
ये तेरे हुनर की हद थी, यामेरे जुनू का था वाकया।।" - शार्दुला
6. वो तकता रहता है हर वक़्त आसमाँ की तरफ़, खला में जाने उसे क्या दिखाई देता है |
करोड़ों लोग हैं दुनिया में यूँ तो कहने कोकहीं –कहीं कोई कोई इन्साँ दिखाई देता है ||
7. "सूरत से जो सीरत को छिपाये फिरते हैंवो कभी सादा चेहरों में दिखते नहीं हैं" : नज़
8. "बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!पूछेगा सारा गाँव, बंधु!" : निराला
9. "फ़िक्र क्या तुझको कहाँ तक जाएगा यह कारवाँ |
बाँध ले बिस्तर, मुसाफिर! तेरा घर आने को है ||" : गुलाब
10. "वहां भी पेट ही का मसला है, जहाँ पैरों में घुँघरू बोलते हैं |
जिधर घोडों ने चुप्पी साध ली है, वहीं भाड़े के टट्टू बोलते हैं || -Jamal
11. "उनसे कई बार मिला, बहुत-सी बातें कहीं |
पर संकोच मेंया बुद्धिमानी की ओट में, वे चुप रहे |
महज़ कहा
हूँ, हाँ और एक नहीं" : अग्रवाल
12. "मैं इतना ही तय करता हूँ
कि आज सड़क पर एक क़दमचलूँगा
पैर उठाते हीकोई पीछे से कालर पकड़ कर खींचता है
किस से पूछ कर पैर उठाया।" : साही
13. "ये अंजुमन, ये क़हक़हे, ये महवशों की भीड़ |फिर भी उदास,फिर भी अकेली है ज़िंदगी ||" : नक़्श
14. "कब पता था साथ होंगीं इस कदर आसानियाँ |
पाँव रखूंगा जहाँ मैं पंथ बनता जाएगा ||" : वाते
15. "वो गुलेलें तो फिर भी बना लें मगर |
अब वो नज़रें गईं वो निशाने गए ||
16. "शराफ़त यूँ है जैसे एक लड़की, भरे बाज़ार में तन्हा खड़ी है"
17. "जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सीमित पग डग, लम्बी मंज़िल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं।दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रसाद –
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।"
: Shivmangal Singh 'Suman'
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ReplyDeleteIt was funny. Keep on posting!
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