Jul 21, 2010

Few lines from the hindi books,

I am reading for last few days,

"टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली।
जिसका जितना आंचल था, उतनी ही सौग़ात मिली।।


 जब चाहा दिल को समझें, हंसने की आवाज़ सुनी।

 जैसे कोई कहता हो, लो फिर तुमको अब मात मिली।।


 बातें कैसी ? घातें क्या ? चलते रहना आठ पहर। 

दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली।।

Some more,


नहीं चाहता, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की हाला,

नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों का प्याला,
साकी, मेरी ओर न देखो मुझको तनिक मलाल नहीं,
इतना ही क्या कम आँखों से देख रहा हूँ मधुशाला।

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